अपराजेय स्वाध्याय
अपराजेय स्वाध्याय इयत्ता नववी हिंदी

श्रवणीय
हेलन केलर की जीवनी का अंश सुनिए और मुख्य मुद्दे सुनाइए।
उत्तर :
हेलन केलर की जीवनी अत्यंत प्रेरणादायक और अद्भुत है। वे एक ऐसी महान महिला थीं जिन्होंने अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों को साहस और दृढ़ संकल्प से पार किया।
मुख्य मुद्दे :
- जन्म और बाल्यकाल :
हेलेन केलर का जन्म 27 जून 1880 को अमेरिका के अलबामा राज्य में हुआ था। डेढ़ वर्ष की आयु में बीमारी के कारण वे अंधी और बधिर हो गईं। - शिक्षा की शुरुआत :
सात वर्ष की आयु में उनकी शिक्षिका ऐन सुलिवन उनके जीवन में आईं। उन्होंने उन्हें बोलना, पढ़ना और लिखना सिखाया। सुलिवन की मेहनत और केलर की लगन ने असंभव को संभव कर दिखाया। - शिक्षा में उपलब्धियाँ :
हेलेन केलर ने ब्रेल लिपि के माध्यम से शिक्षा प्राप्त की और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के रैडक्लिफ कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। वे पहली बधिर और अंधी महिला थीं जिन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। - सामाजिक कार्य :
उन्होंने विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के लिए कार्य किया और समाज में समानता का संदेश फैलाया। - प्रेरणास्रोत :
हेलेन केलर का जीवन यह सिखाता है कि यदि व्यक्ति में आत्मविश्वास, धैर्य और मेहनत हो, तो कोई भी बाधा जीवन की प्रगति को रोक नहीं सकती।
लेखनीय
“कला की साधना जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देती है” इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
कला मनुष्य के जीवन का एक महत्वपूर्ण और सुंदर अंग है। यह केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि मन की शांति और आत्मसंतोष का भी माध्यम है। जब हम कला की साधना में लीन होते हैं – चाहे वह संगीत हो, चित्रकला, नृत्य, लेखन या अभिनय – तो हम अपने दुख, तनाव और चिंताओं को भूल जाते हैं।
कला हमारी भावनाओं को व्यक्त करने का मार्ग देती है। यह मन को हल्का करती है और जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देती है। कलाकार अपने सृजन में डूबकर एक अलग ही दुनिया में प्रवेश करता है, जहाँ दुख-दर्द का कोई स्थान नहीं होता।
कला न केवल व्यक्तिगत सुख देती है बल्कि समाज में भी सौंदर्य और संवेदनशीलता फैलाती है। इसीलिए कहा गया है कि –
“कला की साधना जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देती है, क्योंकि यह आत्मा को शांति और हृदय को आनंद प्रदान करती है।”
पठनीय
सुदर्शन की ‘हार की जीत’ कहानी पढिए।
उत्तर :
सुदर्शन जी की कहानी ‘हार की जीत’ एक अत्यंत प्रेरणादायक और भावनात्मक कथा है। इसमें जीवन के नैतिक मूल्यों, सच्चाई, और उदारता की भावना को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
कहानी का मुख्य पात्र रामलाल एक ईमानदार और दयालु व्यक्ति है। एक दिन वह बाजार में एक गरीब बच्चे को मिठाई चुराते हुए पकड़ता है, लेकिन दंड देने के बजाय प्रेमपूर्वक समझाता है और उसे मिठाई खिलाता है। उस बच्चे के मन में यह घटना अमिट छाप छोड़ देती है।
वर्षों बाद जब रामलाल किसी कारणवश मुकदमे में फँस जाता है, तब वही बच्चा – जो अब बड़ा होकर न्यायाधीश बन चुका होता है – रामलाल को पहचान लेता है और न्यायपूर्वक उसे निर्दोष घोषित करता है।
कहानी का संदेश:
यह कहानी सिखाती है कि दयालुता और सच्चे मानवता के भाव कभी व्यर्थ नहीं जाते। जीवन में किसी पर उपकार करने का फल अवश्य मिलता है। सच्ची हार ही भविष्य में बड़ी जीत का कारण बन सकती है – इसलिए ही कहानी का शीर्षक है “हार की जीत”।
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
१) संजाल पूर्ण कीजिए :

उत्तर :

२) रिक्त स्थान पूर्ण कीजिए :

उत्तर :

३) परिच्छेद से ऐसे दो शब्द ढूँढकर लिखिए जिनका वचन परिवर्तन नहीं होता।
उत्तर :
१. माली
२. फल
४) ‘कला में अभिरुचि होने से जीवन का आनंद बढ़ता है’ अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
कला में अभिरुचि होने से जीवन का आनंद अनेक गुना बढ़ जाता है, क्योंकि कला मनुष्य के हृदय और आत्मा दोनों को छूती है। जब कोई व्यक्ति संगीत सुनता है, चित्र बनाता है, कविता लिखता है या नृत्य करता है, तो वह अपने भीतर की भावनाओं को सृजन के रूप में बाहर लाता है। यह प्रक्रिया मन को प्रसन्नता, शांति और संतुलन प्रदान करती है।
कला हमें जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को महसूस करने की क्षमता देती है। यह हमें प्रकृति, समाज और मानवता से जोड़ती है। कलाकार अपने दृष्टिकोण से संसार को नए ढंग से देखता है, और यही सोच व्यक्ति को संवेदनशील बनाती है।
इसके अलावा, कला जीवन में उत्साह और प्रेरणा भरती है। जब हम किसी सुंदर चित्र, मधुर गीत या नाट्य प्रस्तुति को देखते हैं, तो मन में एक नई ऊर्जा का संचार होता है। कला हमारे भीतर की नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मकता को बढ़ाती है।
इसलिए कहा गया है कि – “जहाँ कला है, वहाँ आनंद है।”
कला जीवन को केवल जीवंत नहीं बनाती, बल्कि उसे अर्थपूर्ण और सुंदर भी बना देती है।
आसपास
कलाक्षेत्र में ‘भारतरत्न’ उपाधि से अलंकृत महान विभूतियों के नाम, क्षेत्र, वर्षानुसार सूची बनाइए।
उत्तर :
कलाक्षेत्र (संगीत, नृत्य, नाटक, चित्रकला, सिनेमा आदि) में भारत रत्न से सम्मानित महान विभूतियों की सूची इस प्रकार है –
| क्रमांक | विभूति का नाम | क्षेत्र | वर्ष |
|---|---|---|---|
| 1 | लता मंगेशकर | संगीत (गायन) | 2001 |
| 2 | एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी | शास्त्रीय संगीत | 1998 |
| 3 | सत्यजित रे | फिल्म निर्देशन | 1992 |
| 4 | पंडित रविशंकर | सितार वादन | 1999 |
| 5 | भीमसेन जोशी | शास्त्रीय गायन | 2008 |
| 6 | उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ | शहनाई वादन | 2001 |
| 7 | लता मंगेशकर | हिंदी व मराठी फिल्म संगीत | 2001 |
| 8 | उस्ताद रविशंकर | भारतीय संगीत का वैश्विक प्रसार | 1999 |
मौलिक सृजन
‘समाज के जरुरतमंद लोगों की मैं सहायता करूँगा’ विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
समाज में कई ऐसे लोग हैं जो गरीबी, बीमारी या किसी अन्य कठिन परिस्थिति के कारण सहायता के मोहताज हैं। मेरा मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह समाज के ज़रूरतमंद लोगों की सहायता करे। मैं भी अपने सामर्थ्य के अनुसार उनकी मदद करूँगा।
मैं गरीब बच्चों को शिक्षा दिलाने में सहयोग करूँगा ताकि वे भी एक बेहतर जीवन जी सकें। मैं वृद्धाश्रमों और अनाथालयों में जाकर जरूरतमंदों की सेवा करूँगा और उनके चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करूँगा। जब भी किसी को भोजन, कपड़े या दवाई की जरूरत होगी, मैं अपनी ओर से मदद पहुँचाने का प्रयास करूँगा।
समाज की प्रगति तभी संभव है जब हम एक-दूसरे की सहायता करें और इंसानियत को सर्वोपरि मानें। इसलिए मैं यह संकल्प लेता हूँ कि – “जहाँ भी किसी को मेरी जरूरत होगी, मैं मदद के लिए अवश्य आगे आऊँगा।”
सीख: समाज की सेवा ही सच्ची मानवता है।
पाठ से आगे
दिव्यांग महिला खिलाड़ियों के बारे में जानकारी प्राप्त करके टिप्पणी तैयार कीजिए।
उत्तर :
भारत की कई दिव्यांग महिला खिलाड़ी अपनी मेहनत, हिम्मत और आत्मविश्वास के बल पर देश का नाम रोशन कर चुकी हैं। उन्होंने यह साबित किया है कि यदि मन में दृढ़ निश्चय और जुनून हो तो शारीरिक कमी सफलता में बाधा नहीं बनती।
1. दीपा मलिक:
दीपा मलिक भारत की पहली दिव्यांग महिला हैं जिन्होंने पैरालंपिक खेलों में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रचा। उन्होंने 2016 रियो पैरालंपिक में शॉट पुट में पदक जीता। वह पैरालंपिक में पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी हैं।
2. भाविना पटेल:
भाविना पटेल ने 2021 के टोक्यो पैरालंपिक में टेबल टेनिस में सिल्वर मेडल जीता। उन्होंने अपनी दृष्टि बाधा को कभी कमजोरी नहीं बनने दिया और पूरे देश का गौरव बढ़ाया।
3. एकता भयान:
एकता भयान व्हीलचेयर थ्रोअर (F51 वर्ग) हैं। उन्होंने एशियाई पैरा गेम्स 2018 में गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम ऊँचा किया।
4. अर्चना राजेन्द्रन:
अर्चना ने कई राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अनेक पदक जीते और यह साबित किया कि दिव्यांगता केवल शरीर की होती है, मन की नहीं।
टिप्पणी:
इन सभी दिव्यांग महिला खिलाड़ियों ने समाज को यह प्रेरणा दी है कि “सच्ची शक्ति शरीर में नहीं, बल्कि मन में होती है।” उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी और अपने संघर्ष, आत्मविश्वास और परिश्रम से भारत को गौरवान्वित किया।
इनसे हमें सीख मिलती है कि यदि हम दृढ़ निश्चय करें, तो कोई भी बाधा हमारे सपनों को पूरा करने से नहीं रोक सकती।
पाठ के आँगन में
१) सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :-
क) केवल एक शब्द में उत्तर लिखिए :
१. जिनमें चल – फिरने की क्षमता का अभाव हो –
उत्तर :
लँगड़ा
२. जिनमें सुनने की क्षमता का अभाव हो –
उत्तर :
बधिर
३. जिनमें बोलने की क्षमता का अभाव हो –
उत्तर :
गूँगा
४. स्वस्थ शरीर में किसी भी एक क्षमता का अभाव होना –
उत्तर :
दिव्यांग
ख) पाठ में प्रयुक्त वाक्य पढ़कर व्यक्ति में निहित भाव लिखिए :
१. ‘टाँग ही काटनी है तो काट दो।’
उत्तर :
अमरनाथ अपने स्वास्थ को लेकर परिवारवालों को चिंतित नहीं देख सकते थे। इस वाक्य से उनकी सकारात्मक सोच का पता चलता है। वे बड़े ही हिम्मती और जीवन में आने वाली परेशानियों का सामना निडरता से करने के लिए तैयार थे।
२. ‘मैं जानता हूँ कि, जीवन का विकास पुरुषार्थ में हैं, आत्महिनता में नहीं।’
उत्तर :
अमरनाथ जी को एक-एक करके अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। पहले उनकी टाँग काटनी पड़ी। वे मानते थे कि जीवन का विकास पुरुषार्थ में है, आत्महिनता में नहीं। उन्होंने दुखी हुए बिना रंगों और चित्रों में, बागवानी में स्वयं को डुबा दिया। फिर उनकी दाई बाँह काटनी पड़ी। अब चित्र बनाने के स्थान पर उन्होंने शास्त्रीय संगीत का अभ्यास शुरू किया। लेकिन बीमारी के कारण उनकी आवाज भी एक दिन समाप्त हो गई। अमरनाथ जी अब प्रसिद्ध संगीतज्ञों के कैसेट सुनते। बगीचे में बैठकर पक्षियों का कलरव, पत्ते झरने की आवाज, हवा की सरसराहट, कलियों के चटखने की आवाजों का आनंद लेते!
२) ‘हीन’ शब्द का प्रयोग करके कोई तीन अर्थपूर्ण शब्द तैयार करके लिखिए :

उत्तर :

३) ‘परिस्थिति के सामने हार न मानकर उसे महर्ष स्वीकार करने में ही जीवन का सार्थकता है’, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘जीवन में सुख-दुख का चक्र निरंतर चलता रहता है। जिस प्रकार मनुष्य सुख के क्षणों को आनंदित होकर स्वीकार करता है, उसी प्रकार बिकट परिस्थिति को भी सहर्ष स्वीकार कर उसका सामना करना चाहिए। अपने जीवन की सुखमय बनाने के लिए उसे बिकट परिस्थितियों में धैर्य के साथ काम लेना चाहिए। परेशानियों की सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। कुछ परिस्थितियाँ दर्दनाक होती हैं, किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति जीना ही छोड़ दे। उन परिस्थितियों का सामना करने के लिए उसे अपने आप को और अधिक सक्षम बनाना चाहिए जीवन की सार्थकता इसी में है।