अंधायुग स्वाध्याय

अंधायुग स्वाध्याय

अंधायुग स्वाध्याय इयत्ता आठवी हिंदी

कल्पना पल्लवन

‘मनुष्य का भविष्य उसके हाथों में है’ अपने विचार लिखो।

उत्तर :

‘मनुष्य का भविष्य उसके हाथों में है’ – यह वाक्य हमें यह सिखाता है कि इंसान अपने कर्मों और प्रयासों से अपना भाग्य स्वयं बनाता है। भविष्य किसी जादू या भाग्य पर नहीं, बल्कि हमारी मेहनत, लगन और सही निर्णयों पर निर्भर करता है। जो व्यक्ति आज परिश्रम करता है, समय का सदुपयोग करता है और कठिनाइयों से डरता नहीं, वही कल सफलता प्राप्त करता है।

जो विद्यार्थी आज मन लगाकर पढ़ाई करता है, वही भविष्य में एक सफल व्यक्ति बनता है। इसी तरह, जो किसान समय पर खेती करता है, वही भरपूर फसल पाता है। इसलिए यह स्पष्ट है कि भाग्य वही बदलता है जो स्वयं पर विश्वास रखता है और अपने कर्मों से आगे बढ़ता है।

आलस्य, डर और दूसरों पर निर्भर रहना व्यक्ति को कमजोर बनाते हैं, जबकि आत्मविश्वास और कर्मशीलता उसे मजबूत बनाते हैं। जैसा कि कहा गया है – “कर्म ही भाग्य का निर्माता है।” इसलिए हमें अपने जीवन में सकारात्मक सोच रखकर, मेहनत और ईमानदारी से काम करते रहना चाहिए। सच्चाई यह है कि मनुष्य का भविष्य किसी और के हाथों में नहीं, बल्कि उसके अपने हाथों में ही होता है।

सूचना के अनुसार कृतियाँ करो :-

१) कृति करो :

उत्तर :

२) संजाल पूर्ण करो :

उत्तर :

३) उत्तर लिखो :

उत्तर :

भाषा बिंदु

१. पाठों में आए मुहावरों का अर्थ लिखकर उनका अपने स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग करो :

उत्तर :

१) पारावार न रहता।

अर्थ : सीमा न रहना।

वाक्य : बारहवीं की परीक्षा में शिवानी अपने जिले में प्रथम आई, तो उसके माता-पिता की प्रसन्नता का पारावार न रहा।

२) सिर खपाना।

अर्थ : बहुत बुद्धि लगाना।

वाक्य : घंटों सिर खपाने के बाद भी समस्या का हल नहीं निकला।

३) गर्व में चूर होना।

अर्थ : घमंड करना।

वाक्य : व्यापार में थोड़ी सफलता क्या मिली, जय गर्व में चूर रहने लगा है।

४) घोड़े बेचकर सोना।

अर्थ : निश्चित होकर सोना।

वाक्य : परीक्षा समाप्त होने पर अभय घोड़े बेचकर सो रहा है।

५) आँखों से ओझल होना।

अर्थ : गायब हो जाना।

वाक्य : साँप हमारे देखते ही देखते आँखों से ओझल हो गया।

२. पढ़ो और समझो :

उत्तर :

स्वयं अध्ययन

‘कर्म ही पूजा है’, विषय पर अपने विचार सौ शब्दों में लिखो।

उत्तर :

‘कर्म ही पूजा है’ यह वाक्य हमें जीवन का बहुत बड़ा सत्य सिखाता है। इसका अर्थ है कि अपने कर्तव्यों को ईमानदारी, मेहनत और निष्ठा के साथ करना ही सच्ची पूजा है। केवल मंदिर में जाकर प्रार्थना करना ही पूजा नहीं होती, बल्कि अपने कार्य को पूरी लगन से करना भी ईश्वर की आराधना के समान है।

जो व्यक्ति अपने काम को प्रेम से करता है, वह जीवन में कभी असफल नहीं होता। विद्यार्थी यदि मन लगाकर पढ़ाई करे, किसान यदि पूरी मेहनत से खेती करे, शिक्षक यदि निष्ठा से पढ़ाए, तो यही उनके लिए सच्ची पूजा है। निष्काम भाव से किया गया कर्म न केवल सफलता देता है, बल्कि आत्मिक शांति भी प्रदान करता है।

कर्मशील व्यक्ति समाज में आदर पाता है और उसका जीवन दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाता है। जैसा कि श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है – “कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो।” इसलिए हमें सदैव अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए कर्म को ही पूजा मानना चाहिए, क्योंकि कर्म से ही जीवन का निर्माण और ईश्वर की प्राप्ति दोनों संभव हैं।

उपयोजित लेखन

निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर कहानी लिखकर उसे उचित शीर्षक दो।

उत्तर :

जैसे को तैसा

रामपुर नाम का एक गॉव था। उस गॉव में एक दर्जी था। वह बड़ा द्यालु था। सबके साथ प्रेम से रहता था। बाजार में उसकी एक अच्छी-सी दुकान थी। आसपास सब उसके मित्र थे। दर्जी की दुकान से कुछ दूर एक नदी बहती थी। एक हाथी रोज दुकान के सामने से नदी पर नहाने जाता था। एक दिन दर्जी ने हाथी को एक केला दिया। हाथी बहुत खुश हुआ, क्योंकि केला उसे बहुत पसंद था।

उस दिन से हाथी रोज दर्जी की दुकान के सामने रुकता और खिड़की में से अपनी सूँड बढ़ाता। दर्जी उसे कभी केला और कभी गन्ना देता। काफी समय तक इसी तरह चलता रहा। हाथी और दर्जी एक-दूसरे के मित्र बन गए। एक दिन हाथी दुकान के सामने आया, तो दर्जी को मजाक सूझा। हाथी ने रोज की तरह अपनी सूँड बढ़ाई, तो दर्जी ने हाथी की सूँड में सुई चुभो दी। हाथी को बहुत गुस्सा आया। वह चुपचाप नदी की ओर चला गया।

पर नदी से नहाकर लौटते समय वह अपनी सूँड में बहुत सारा गंदा पानी भर लाया। हाथी ने सूँड में भरा सारा पानी दर्जी की दुकान में रखे कपड़ों पर उलट दिया। सारे नए कपड़े गंदे हो गए। दर्जी बहुत दुखी हुआ। साथ ही वह समझ भी गया कि हमें पशुओं को कभी सताना नहीं चाहिए।

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