वरदान माँगूँगा नहीं स्वाध्याय
वरदान माँगूँगा नहीं स्वाध्याय इयत्ता नववी हिंदी

मौलिक सृजन
निम्नलिखित शब्दों के आधार पर कहानी लिखिए तथा उसे उचित शीर्षक दीजिए :-
कृति के आवश्यक सोपान :

उत्तर :
स्मृतियों के साथ अंतरिक्ष की ओर
खुशी के मारे उसके पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। नासा से बाहर आते ही उसने घर का नंबर मिलाया। “पापा !” उससे बोला नहीं गया। “हमारी बेटी ने किला फतह कर लिया ! है न ?” “हाँ, पापा !” वह चहकी, “मैंने नासा में प्रवेश पानेवाली परीक्षा पास कर ली है। मेरिट में पहले नंबर पर हूँ।” “शाबाश ! मुझे पता था हमारी बेटी लाखों में एक है !” “पापा, पंद्रह मिनट के ब्रेक के बाद एक औपचारिक इंटरव्यू और होना है। उसके फौरन बाद मुझे ‘नासा अंतिरक्ष प्रवेश कार्ड’ दिया जाएगा। मम्मी को फोन देना” “तुम्हारी मम्मी सब्जी लेने गई है। आते ही बात कराता हूँ। आल द बेस्ट, बेटा !” उसकी आँखे भर आई। पापा की छोटी-सी नौकरी थी, लेकिन उन्होंने बैंक से कर्जा लेकर अपनी दोनों बेटियों को उच्च शिक्षा दिलवाई थी। मम्मी-पापा की आँखों में तैरते सपनों की हकीकत में बदलने का अवसर आ गया था। उसे याद ऐ अपने वह बचपन के दिन, वह बरगद का वृक्ष, जिसके नीचे बैठकर वह लगाकर अंतरिक्ष की ओर देखा करती थी। उसी वृक्ष के नीचे बैठकर वह अंतरिक्ष संबंधी पुस्तकें पढ़ा करती थी। उसे याद आया, वह कैमरा, जो उसके पापा ले आए थे। उसी कैमरे को आँखों के सामने पकड़कर वह अंतरिक्ष की ओर देखती थी। बचपन की वह यादें, वह वृक्ष, पुस्तक और कैमरा मानो उसे पुकार पुकार कर रहे थे – दिव्या तुम सचमुच दिव्य हो, अब तुम अंतिरक्ष का भ्रमण करने निकलोगी। क्या हमें साथ लेकर नहीं चलोगी ?
संभाषणीय
‘गणतंत्र-दिवस’ के अवसर पर जनतांत्रिक शासन प्रणाली पर अपना मंतव्य प्रकट कीजिए।
उत्तर :
एक समय था जब सारी दुनिया में छोटी-छोटी रियासतें हुआ करती थीं और उनके प्रमुख राजा हुआ करते थे। इन राजाओं के अपने कानून होते थे। उनके शब्द ही अदालती-निर्णय हुआ करते थे। सारे अधिकार राजाओं के हाथ में होते थे और जनता की हालत गुलामों जैसी हुआ करती थी।
एक समय ऐसा आया जब विश्व में शासन की बागडोर जनता के हाथ आने लगी और जनता के चुने हूर प्रतिनिधी निश्चित अवधि के लिए शासन करने के लिए चुने जाते लगे। इस व्यवस्था में जनता को अपने सुख-दुख की बात अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के सामने रखने का अधिकार मिल गया है।
जनतांत्रिक प्रणाली में जनता को अपनी पसंद के प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मिलता है; पर चुने जाने पर प्रतिनिधि उनकी अपेक्षा के अनुसार कार्य करेंगे, यह निश्चित नहीं होता। इसीलिए प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली में कभी-कभी भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और येनकेन प्रकारेण सत्ता पर सदा काबिज रहने का प्रयास करने वाले प्रतिनिधियों को कभी नहीं होती। जनतांत्रिक शासन प्रणाली एक उत्तम शासन प्रणाली है, पर चुने हूर प्रतिनिधियों में नैतिकता होनी अत्यंत आवश्यक है। तभी यह शासन व्यवस्था सही ढंग से काम कर सकती है।
लेखनीय
‘जीवन में परिश्रम का महत्त्व पर’ अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य के जीवन में परिश्रम का बहुत महत्त्व है। मनुष्य अपनी मेहनत के बल पर ही अपना भोजन, वस्त्र और घर तैयार करता है। इसीलिए मनुष्य अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ बन पाया है। श्रम से सुख का निर्माण होता है। संसार में जितने भी महान कार्य हुए हैं, उनमें मनुष्य का श्रम महत्त्वपूर्ण है। जो व्यक्ति श्रम करता है, वह आगे बढ़ता है। संसार में जितने भी महान व्यक्ति हुए हैं, उन्होंने अपने पूरे जीवन भर अथक परिश्रम किया है। अपने श्रम के बल पर ही वे महान बने हैं। श्रम एक प्रकार का तप है। इसमें तप कर जो मनुष्य निकलता है, वह खरे सोने की भाँति हो जाता है। श्रम का कोई अंत नहीं है। श्रम से ही मनुष्य सागर से मोती निकाल लाता है और धरती के नीचे खानों में जाकर सोना चाँदी जैसी धातुएँ प्राप्त कर लेता है।
कहावत है, जो आदमी श्रम करता है, ईश्वर भी उसकी मदद करता है। परिश्रम करने वाला व्यक्ति अपना भाग्य खुद बनाता है। श्रम करने वाला व्यक्ति स्वस्थ होता है। परिश्रम करने वाले व्यक्ति में कार्य करने की अद्भुत क्षमता आ जाती है।
श्रवणीय
किसी अवकाश प्राप्त सैनिक से उनके अनुभव सुनिए और उनसे प्रेरणा लीजिए।
उत्तर :
बचपन से ही, सब से इतिहास को पढ़ा था, मुझे सैनिक एक बहुत ही आदर्श पुरुष दिखाई देता था। आज एक अवकाश प्राप्त सैनिक से उनका अनुभव सुनने के बाद मेरे ह्रदय में सनिकों के प्रति सम्मान बढ़ गया है। मैने पाया १०० मे से ९९ सैनिक तो ग्रामीण परिवेश से ही थे। जिनके परिवार आर्थिक रूप से बहुत कमजोर थे। बहुत सारे ऐसे परिवार थे जिनका एक ही बेटा था, और वो भी फ़ौज मे। पश्चिम, उत्तर प्रदेश मे ऐसे बहुत से गाँव है जहा जे ६०% से ७०% नौजवान फ़ौज मे ही भरती होते है। और उनकी देशभक्ति, उनका भारत माता के प्रति लगाव और जज्बा देखते ही बनता है। सही मायने मे वो ही भारत माता के लाल हैं।
आसपास
‘जीत के लिए संघर्ष जरूरी है’ विषय पर प्रतियोगिता में सहभागी टीम के साथ चर्चा कीजिए।
उत्तर :
किसी ने क्या क्या खूब कहा है: किश्ती तूफान से निकल सकती है, बुझता हुआ चिराग फिर से जल सकता है।
उम्मीद न हार, न अपने इरादे बदल, ये तकदीर है, तकदीर किसी भी वक्त बदल सकती है। मनुष्य के जीवन में पल-पल परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं। जीवन में सफलता-असफलता, हानि-लाभ, जय-पराजय के अवसर मौसम के समान हैं, कभी कुछ स्थिर नहीं रहता। हमारे जीवन में सुख भी है, दुख भी है, अच्छाई भी है, बुराई भी है। जहाँ अच्छा वक्त हमें खुशी देता है, वहीं बुरा वक्त हमें मजबूत बनाता है।
हम अपनी जिंदगी की सभी घटनाओं पर नियंत्रण नहीं रख सकते, पर उनसे निपटने के लिए सकारात्मक सोच के साथ सही तरीका तो अपना ही सकते हैं। कई लोग अपनी पहली असफलता से इतना परेशान हो जाते हैं कि अपने लक्ष्य को ही छोड़ देते हैं। कभी-कभी तो अवसाद में चले जाते हैं। अब्राहम लिंकन भी अपने जीवन में कई बार असफल हुए और अवसाद में भी गए किन्तु उनके साहस और सहनशीलता के गुण ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ सफलता दिलाई। उनेकों चुनाव हारने के बाद ५२ वर्ष की उम्र में अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए।
संघर्ष ही जीवन है। जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है। इस सृष्टि में छोटे-से-छोटे प्राणी से लेकर बड़े-से-बड़े प्राणी तक, सभी किसी-न किसी रूप में संघर्षरत हैं। जिसने संघर्ष करना छोड़ दिया, वह मृतप्राय हो गया। जीवन में संघर्ष है प्रकृति के साथ, स्वयं के साथ, परिस्थितियों के साथ। जो तरह-तरह के संघर्षों का सामना करने से कतराते हैं, वे जीवन से भी हार जाते हैं, जीवन भी उनका साथ नहीं देता। जब हम संघर्ष करते हैं, तभी हमें अपने बल व सामर्थ्य का पता चलता है। संघर्ष करने से ही आगे बढ़ने का हौसला मिलता है और अंतत: हम अपनी मंजिल को हासिल कर लेते है।
पाठ के आँगन में
१) सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए :
क) कवि इन परिस्थितियों में वरदान नहीं माँगना चाहते –
१.
२.
३.
४.
उत्तर :
१. जीवन के महा संग्राम में तिल-तिल मिटने पर
२. संघर्ष पथ पर हार या जीत मिलने पर
३. ह्रदय में कष्ट होने पर
४. कर्तव्य पथ पर दुख या अभिशाप मिलने पर
ख) आकृति पूर्ण कीजिए :
१.

उत्तर :

२.

उत्तर :

२) पद्य में पुनरावर्तन हुई पंक्ति लिखिए।
उत्तर :
वरदान माँगूँगा नहीं।
३) रेखांकित वाक्यांशों के स्थान पर उचित मुहावरा लिखिए :-
रुग्ण शय्या पर पड़ी माता जी को देखकर मोहन का धीरज धीरे-धीरे समाप्त हो रहा था। (तिल-तिल मिटना, जिस्म टूटना)
उत्तर :
रुग्ण शय्या पर पड़ी माता जी को देखकर मोहन का धीरज तिल-तिल मिट रहा था।
पाठ के आगे
कविवर्य रवींद्रनाथ टैगोर की कविता पढ़िए।
उत्तर :
मेरा माथा नत कर दो तुम
मेरा माथा नत कर दो तुम अपनी चरण-धूलि-तल में;
मेरा सारा अहंकार दो डुबो-चक्षुओं के जल में।
गौरव-मंडित होने में नीट मैने निज अपमान किया है;
घिरा रहा अपने में केवल मैं तो अविरल पल-पल में।
मेरा सारा अहंकार दो डुबो चक्षुओं के जल में।।
अपना करूँ प्रचार नहीं मैं, खुद अपने ही कर्मों से;
करो पूर्ण तुम अपनी इच्छा मेरी जीवन-चर्या से।
चाहूँ तुमसे चरम शान्ति मैं, परम कान्ति निज प्राणों में;
रखे आड़ में मुझको आओ, ह्रदय-पद्य-दल में।
मेरा सारा अहंकार दो। डुबो चक्षुओं के जल में।।
भाषा बिंदु
निम्नलिखित अशुद्ध वाक्यों को शुद्ध करके फिर से लिखिए :-
अशुद्ध वाक्य | शुद्ध वाक्य |
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१. लता कितनी मधुर गाती है। | १. ………………….. |
२. तितली के पास सुंदर पंख होते है। | २. ………………….. |
३. यह भोजन दस आदमी के लिए है। | ३. ………………….. |
४. कश्मीर में कई दर्शनीय स्थल देखने योग्य है। | ४. ………………….. |
५. उसने प्राण की बाजी लगा दी। | ५. ………………….. |
६. तुमने मीट्टी से का प्यार। | ६. ………………….. |
७. यह है न पसीने का धारा। | ७. ………………….. |
८. आओ सिंहासन में बैठो। | ८. ………………….. |
९. तुम हँसो कि फूले-फले देश। | ९. ………………….. |
१०. यह गंगा का है नवल धार। | १०. ………………….. |
उत्तर :
अशुद्ध वाक्य | शुद्ध वाक्य |
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१. लता कितनी मधुर गाती है। | १. लता कितना मधुर गाती है। |
२. तितली के पास सुंदर पंख होते है। | २. तितली के पंख सुंदर होते है। |
३. यह भोजन दस आदमी के लिए है। | ३. यह भोजन दस लोगों के लिए है। |
४. कश्मीर में कई दर्शनीय स्थल देखने योग्य है। | ४. कश्मीर में कई दर्शनीय स्थल है। |
५. उसने प्राण की बाजी लगा दी। | ५. उसने प्राणों की बाजी लगा दी। |
६. तुमने मीट्टी से का प्यार। | ६. तुमने मीट्टी से किया प्यार। |
७. यह है न पसीने का धारा। | ७. यह है न पसीने का धार। |
८. आओ सिंहासन में बैठो। | ८. आओ, सिंहासन में बैठो। |
९. तुम हँसो कि फूले-फले देश। | ९. तुम हँसो, ताकि फूले-फले देश। |
१०. यह गंगा का है नवल धार। | १०. यह गंगा की है नवल धार। |