गजल स्वाध्याय

गजल स्वाध्याय

गजल स्वाध्याय इयत्ता दहावी हिंदी

सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :-

१) गजल की पंक्तियों का तात्पर्य :

१. नींव के अंदर दिखो –

उत्तर :

तात्पर्य है कि दिखना ही है तो अपने भीतर के इंसान को अच्छे कर्मों में लगाओ। जिस प्रकार नींव के भीतर की ईटें दिखाई नहीं देती किंतु पूरी ईमारत उस पर खड़ी रहती है।

२. आईना बनकर दिखो –

उत्तर :

तात्पर्य यह है कि जीवन में ऐसा काम करो कि लोग तुम्हें देख कर अपना कार्य करें। कहने का अभिप्राय तात्पर्य है कि तुम प्रदर्शक बनकर दुसरों को रास्ता दिखाओ।

२) कृति पूर्ण कीजिए :

उत्तर :

३) जिनके उत्तर निम्न शब्द हों, ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए :

१. भीड़

उत्तर :

कवि शक्ल को कहाँ देखना चाहते है ?

२. जुगनू

उत्तर :

कोहरे में कौन चमकता है ?

३. तितली

उत्तर :

फूलों पर कौन बैठनी है ?

४. आसमान

उत्तर :

तारे कहाँ पर दिखाई देते है ?

४) निम्नलिखित पंक्तियों से प्राप्त जीवनमूल्य लिखिए :

१. आपको महसूस …………………………. भीतर दिखो।

उत्तर :

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते है कि यह भी निश्चित है कि, जब आप प्रगति करोगे, तो ऐसा होगा कि लोग आपसे ईष्र्या करेंगे, आपके प्रति द्वेष रखेंगे, लेकिन तुम्हें इस जलन का आभास ही नहीं होने देना है। तुम तो उस धागे की तरह बनो जो मोम बत्ती के भीतर रह कर रोशनी देता है। नाम धागे का नहीं बल्कि मोमबत्ती का होता है लोग कहते है कि मोमबत्ती से उजाला हो रहा है।

२. कोई ऐसी शक्ल ……………………….. मुझे अक्सर दिखो।

उत्तर :

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि इस गजल के माध्यम से समूचे संसार को यह संदेश देना चाहते है कि, सब अच्छा करें, मैं जिसे भी देखू वहाँ तुम नजर आओं। भीड़ भरी दुनिया में तुम जैसा कोई तो नजर आए जो तुम्हारे बताए रास्ते पर चल रहा है, उसमें तुम्हारे सदगुण होने चाहिए, यदि ऐसा हो गया तो उसके चेहरे में मुझे तुम्हारी सूरत दिखाई देगी।

५) कृति पूर्ण कीजिए :

उत्तर :

६)

उत्तर :

अभिव्यक्ति

प्रस्तुत गजल की अपनी पसंदीदा किन्हीं चार पंक्तियों का केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

एक जुगनू ने कहा मैं भी तुम्हारे साथ हूँ, वक्त की इस धुंध में तुम रोशनी बनकर दिखो।

– अंधकार में चमकता हुआ जुगनू आशा रूपी किरण के समान है जो अंधकार में प्रकाश का साम्राज्य फैलाता है। अर्थात हताश और निराश मनुष्यों के लिए सदैव उम्मीद की किरण जगाए रखने का संदेश दिया गया है। आगे कवि माणिक वर्मा कहते हैं कि मनुष्य के लिए कुछ मर्यादाएं हैं कुछ सीमाएं हैं जिन्हें मानकर वह अपने कर्तव्य का पालन करे, क्योंकि इसी के द्वारा वह जन समुदाय या मानव समाज की सेवा भी कर सकता है।

जिस प्रकार एक सीप के अंदर मूल्यवान मोंती छिपा होता है उसी प्रकार हमें भी समाज के कल्याण के लिए मर्यादाओं के भीतर रहकर श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए क्योंकि इसी भावना के द्वारा मनुष्य सम्मानित होता है। कवि के द्वारा दी गई पंक्तियों के भीतर यही केंद्रीय भाव छिपा है।

उपयोजित लेखन

‘यदि मेरा घर अंतरिक्ष में होता,’ विषय पर अस्सी से सौ शब्दों में निबंध लेखन कीजिए।

उत्तर :

जीवन में हर इंसान का एक सपना होता है इंसान अपना वह सपना पूरा करना चाहता है। प्रत्येक इंसान के सपने अपनी सोच के अनुसार अलग होते है। मैं जब छोटा बच्चा था तो मेरा बस एक ही सपना था कि मैं अतंरिक्ष में अपना घर बनाता या मेरा घर यदि अंतरिक्ष में होता।

यदि मेरा घर आसमान के ऊपर अंतरिक्ष में होता तो वहाँ में हवा में तैरता और बहुत ऊपर उड़ान भरता। न ही वहाँ स्कूल होता और न ही पढ़ाई करनी पड़ती है बस हवा में रहता। वहाँ का वातावरण अलग होता वहाँ बस मैं और मेरा परिवार। परंतु वहाँ आक्सिजन गैस न होने के कारण बहुत सारे सिलेंडर लेकर जाना पड़ता वहाँ खाना भी हवा में तैर कर खाता कितना मजा आता। अगर सच में ऐसा हो जाए तो मैं बहुत खुश हो जाऊंगा। वहाँ तारों को और बाकी ग्रहों को मैं नजदीक से देख सकूँगा। मैं चाँद और पृथ्वी के चारों ओर दौड़ता। जब भी घूमने का मन करता तो मैं बाहर हवा में घूमता रहता। इस तरह अगर अंतरिक्ष में मेरा घर हो तो मजा ही आ जाता। मै तारों की जिदंगी के साथ अपनी जिंदगी बिताता।

Leave a Comment